ISSN No: 2231-5063
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Article Name :
डॉ. शंकर शेष के नाटकों में रंगमंचीय सम्भावनाएं
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Author Name :
कमलजीत
Publisher :
Ashok Yakkaldevi
Article Series No. :
GRT-6441
Article URL :
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Abstract :
कथावस्तु नाटक का प्रमुख व आवश्यक तत्त्व होता है। डॉ. शंकर शेष के नाटकों के कथ्य प्राचीन तो हैं ही उसके साथ-साथ आधुनिकता के दर्शन में भी उनके नाटकों के कथ्य में दृष्टिगत होते हैं। उन्होंने अपने नाटकों के कथ्य में प्रसंगों तथा घटनाओं का ऐसा समन्वय किया है कि जब उनके नाटकों की कथावस्तु को मंच पर प्रस्तुत किया जाता है तो उनके नाटकों के पात्रों का चरित्र स्वयं ही दर्शकों से परिचित हो उन पर अपना अमिट प्रभाव छोड़ देता है। उनके नाटकों की कथावस्तु का विभिन्न अंकों व दृश्यो मेंसंयोजन भी रंगमंच की दृष्टि से सफल बन पड़ा है उनके प्रथम नाटक ‘मूर्तिकार’ मेंकुल तीन अंक हैं। तीगों अंकों का दृश्य स्थान एक ही है। पहले अंक का दृश्य प्रातः काल का है। इससे कलाकार के जीवन में शांत प्रभात जैसा वातावरण उपस्थित किया जाता है। दूसरे अंक में समय दोपहर का है जैसे जीवन में कुछ रुखापन-सा आ गया हो। तीसरे अंक मेंसंध्या का समय है, ऐसा लगता है जैसे संकटों की गहरी छाया कलाकार के जीवन पर आ पड़ी हो। पहले अंक में समस्या दर्शायी गई है, दूसरे में उस समस्या का विकास तथा समस्या के समाधान की ओर जाने का प्रयास किया गया है तथा तीसरे अंक में समस्या का समाधान हो जाता है अर्थात् कलाकार के आदर्शों की जीत होती है। यह नाटक एक मध्यमवर्गीय परिवार की संघर्षपूर्ण कहानी है।
Keywords :
  • डॉ. शंकर शेष,नाटकों में रंगमंच,‘मूर्तिकार’ ,मध्यमवर्गीय परिवार,
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