ISSN No: 2231-5063
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Article Name :
'बुँद और समुद्र' मेंद्वन्द्वकी -स्थिति
Author Name :
शकुन्तला देवी धर्मपत्नी श्री सुरेन्द्र कुमार
Publisher :
Ashok Yakkaldevi
Article Series No. :
GRT-5712
Article URL :
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Abstract :
अमृतलाल नागर कृत बुँद और समुद्र (1958) व्यक्ति और समाज काद्वन्द्वात्मक स्वरूप को स्पष्ट करने वाला महत्वपूर्ण उपन्यास हैं। समाज और व्यक्ति का अटूट सम्बन्ध है। व्यक्ति का अस्तित्व समाज में निहित हैं और समाज व्यक्तियों की पूरक व विशिष्ट संस्था है। समाज में रहते हुए मनुष्य का संघर्ष-द्वन्द्व, प्रतिकूल -स्थितियों में मानसिक तनाव, युगों से संचित रूढि़यों का विद्राेह और विद्राेह के अस्वीकार में प्रतिक्रिया-स्वरूप समाज का तीखा आक्रोश, एक और रूढ़ परम्पराओं का पोषका, तो दूसरी और परम्पराओं की लोक का विरोध तथा नवीन आस्थाओं, चिन्तन, मान्यताओं का प्रतिस्थापन-समाज की गतिशीलता का द्योतक है। स्वातस्त्रोत्तरा -स्थिति में सामाजिक जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में परिवर्तन लक्षित हुआ। परम्परागत रूढ़ मान्यताओं जीवन-व्यवस्था का टूटना और नवीन आस्था एवं जीवन-व्यवस्था का उदय: एक ओर प्राचीन, जर्जर दीवारें ढह रही हैं तो दूसरी ओर नवचिन्तन, मान्यताओं का आलोक उदित हो रहा है-सामाजिक जीवन की इस संक्रांति का व्यापक चित्र 'बुँद और समुद्र' में दृष्ट्रव्य हैं। उपन्यासकार ने बदलते हुए मध्यवर्गीय समाज की पारिवारिक, आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक, राजनैतिक, वैयक्तिक समस्याओं को वृहत् चित्र-फलक परउखेरा है। लेखक का वक्तव्य हैं, "इस उपन्यास में मैंने अपना और आपका, अपने देश के मध्यवर्गीय नागरिक-समाज का गुण-दोष भरा चित्र ज्यों-का-त्यों आंकने का यथामति, यथासाध्य प्रयत्न किया है।
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