वैश्विक साहित्य के केन्द्र में स्त्री – पुरुष का संबंध रहा है | यह संबन्ध अधिक जटिल , सूक्ष्म और संवेद्य होता है | इसलिए , संवेदनशील रचनाकार का रुझान इस विषय मे अधिक होता है | हमारी भारतीय संस्कृति व समाज में पुरुषों का वर्चस्व रहा है | जैविक भिन्नता के कारण औरत की एसी मानसिक – बनावट की गयी है कि वह दैहिकता के परे आ ही नहीं सकी | आज तक वह ‘भोग्या’ या पुरुषों की ‘सम्पति’ बनी हुई है | |