प्राचीन भारत में साहित्यिक स्त्रोतों में राजतरंगिणी का नाम सबसे विश्वसनीय स्त्रोतों में लिया जाता है| यद्दपि इसके लेखक ने अपने पूर्वगामी एतिहस्करों की आलोचना करते हुए केवल अपनी ही रचना को एकमात्र प्रमाणिक ग्रंथ कहा है | इसमे कई प्रसंग और नामों का उल्लेख होने के साथ साथ ऐसी उपेक्षनीय बातों का भी समावेश हैं की ये सब इस ग्रंथ की प्रमाणिकता व उपयोगिता कम कर देते है | साथ ही इस ग्रंथ में प्रस्तुत कल गणना को भी सर्वथा सांगत विश्वसनीय नहीं माना जा सकता , क्योंकि १२ वि सदी का कल्हण महाभारत कल से लेकर इस ग्रंथ को लिखने के समय तक के बीच हुए सभी कश्मीरी राजाओं का अपेक्षाकृत सर्वाधिक सुसंगत तथा क्रमबद्ध वर्णन करता हैं | जब की इतिहास की अन्य पुस्तक या प्रमाणों से इसकी पुष्टि नहीं की गेई हैं | इसके बावजूद राजतरंगिणी की अपनी ऐतिहासिक महता हैं और तात्कालिक परिवेश का सबसे ठोस प्रमाण है जिसके आधार पर यहां समकालीन समाज का जिक्र किया जा रहा हैं ताकि तुलना करके हम अपने वर्तमान समाज की दशा और दिशा को समझ सकने में इसका प्रयोग कर सके | |