सामंतवादी व्यवस्था का आर्थिक ढांचा श्रमजीवी वर्ग के शोषण पर आधारित किसानोन कि दयनीय और इशारा करते हुए डॉ. कामाला गुप्त कह्ती हैं कि , "भूमी के अनुदान भोगीयोन के हाथो में चाले जाने से किसानो के भूमी विषयक अधिकार तो छिन हि गये साथ हि उन्हे उपसामन्तीकरण के द्वारा पत्ते के चलन का शिकार भी बनना पडा । उप्सामान्तीकरण के प्रथा के अंतर्गत भूमी का स्वामी अपनी इच्छा से अन्य को भूमी दे सकता था। साथ हि उनपर काम करनेवाले कृशको को हस्तांतरीत कर देता था । इस प्रकार नये-नये स्वमियो कि अधिनता कृशाकोन के लिये शोषण के नये क्षेत्र प्रस्तुत करती थी। " |