'चौथा सप्तक' के कवि नंदकिशोर आचार्य ने अपने वक्तव्य में रचना प्रक्रि या को अधिक महत्व दिया हैं। वे कविता के संबंध में कहते हैं कि- "कविता की रचना प्रक्रिया के दौरान ही मैं यह जान पाता हू¡ कि मैं क्या जान व कह रहा हू¡ क्योंकि वहा¡ पूर्व निर्धारित कुछ भी नहीं हैं- और यह जानना अनुभूत्यात्मक स्तर पर होता है इसलिए इस प्रक्रिया के गुजरने के बाद मैं ठीक वहीं नहीं रहता जो उससे पहले था। इस प्रक्रिया में मैं रूपान्तरित सम्पन्न भी होता जाता हू¡1 कविता सृजन के लिए वे किसी मत या दल की प्रतिबद्धता को अनुचित मानते हैं। इस प्रकार की प्रतिबद्धता कवि को सत्य से दूर ले जाती हैं वे स्वयं कहते हैं कि "मैं अपनी संवेदन-क्षमता को निरंतर विकसित करने के प्रयास में रहू¡ और प्रत्येक अनुभूति के प्रति स्वयं को सहज व खुला रखू। यही एक मात्र प्रतिबद्धता है जो मेरे कवि होने में ही निहित है। अन्य किसी भी प्रकार की मतवादी प्रतिबद्धता दलगत प्रतिबद्धता तो और भी अधिक मुझे कविता से उतनी ही दूर कर दे सकती है जितना कि कोई-भी पूर्वग्रह मुझे सत्य से परे रख पाता है।"2 |