भारतीय नवजागरण के अग्रदूत स्वामी विवेकानन्द धर्म को मानव जीवन का अनिवार्य पक्ष मानते थे। उनका मत था कि धार्मिक चेतना, जो एक विशिष्ट प्रकार की आंतरिक अनुभूति होती है तथा जिसमें दैविक व अतिप्राकृतिक अंश की अनिवार्य विद्यमानता होती है, की अभिव्यक्ति धर्म के स्वरूप को स्पष्ट करती है। वस्तुतः धर्म इन्द्रियों व बौद्धिक विवेचनाओं से परे उठने का संघर्ष है। अतः स्पष्ट है कि धर्म अमूर्त तत्वों पर विचार करता है, जबकि विज्ञान का संबंध भौतिक जगत् से होता है। किंतु विवेकानन्द धर्म और विज्ञान में केवल पद्धति का भेद मानते थे और दोनों में सामंजस्य स्थापित करने पर बल देते थे। वस्तुतः जिन अनुभवों तक विज्ञान की पहुँच होती है धर्म उसका अनुसंधान करके ज्ञान सुलभ कराता है। विज्ञान जीवन में स्वतंत्र चिंतन, परिष्कृत विचार उत्पन्न करता है और धर्म जीवन में शुद्धता, प्रेम और त्याग की भावना उत्पन्न करता है। अतः दोनों पृथक नहीं वरन् परस्पराश्रित हैं। |