ISSN No: 2231-5063
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Article Name :
"निराला का प्रयोगवादी दृष्टी"
Author Name :
लता द्विवेदी
Publisher :
Ashok Yakkaldevi
Article Series No. :
GRT-5901
Article URL :
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Abstract :
प्रयोगवाद से आधुनिकतावाद का आरम्भ होता है। प्रयोगवाद का मूलाधार वैयक्तिकता या व्यक्तिवाद (प्राइवेसी) है। छायावादी वैयक्तिकता से यह इस अर्थ में भिन्न है कि पहले में भावुकता का प्राधान्य था तो दूसरे में बौद्धिकता का। यह मुख्यत: शहरी जीवन की जटिलता से संबद्ध है। इसमें यथार्थवाद नहीं, यथार्थ का अमूर्तन मिलता है। आश्चर्य है कि हिन्दी के माक्र्सवादी आलोचक कविता में ही यथार्थवाद खोजने लगे जबकि इसकी गुंजाइश कविता में सबसे कम होती है। प्रगतिवादी निश्चितताओं के विरूद्ध इसमें संदेह, शंका, व्यर्थता आदि प्रमुख बन जाते हैं। इसकी चौथी विशेषता है भाषा-शैली का वैचित्र्य। इसकी शैली स्थिर नहीं होती, शैली की स्थिरता आधुनिकता और प्रयोगवाद के विरूद्ध है। फंतासी, स्वप्न बिम्ब, अन्यापदेशिकता (एलेगरी) इसी भाषिक बुनावट के अनिवार्य अंग हैं। प्रयोगवाद का आरम्भ अज्ञेय के संपादकत्व में प्रकाशित 'तार सप्तक' (1943) से होता है।
Keywords :
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