''समस्त मध्यकाल में निखिल सृष्टि और इतिहास क्रम का नियंता, किसी मानवोपरि अलौकिक सत्ता को माना जाता था। समस्त मूल्यों का वही केन्द्रीय आधर था और मनुष्य की एक मात्र सार्थकता यही थी कि वह अधिक से अधिक उस सत्ता से तादात्म्य स्थापित करने की चेष्टा करे। इतिहास या काल-प्रवाह एसी मानवोपरिसत्ता की सृष्टि का माया रूप में या लीला रूप में''। |