प्रस्तुत शोध में मध्यस्थ दशर्न सहअस्तित्ववाद के प्रकाश में मानवीय मूल्य एवं शिक्षा-संस्कार व्यवस्था पर शोध का अध्ययन किया गया है। प्रत्येक मानव निरन्तर सुख से जीना चाहता है। सुख का सम्पूर्ण स्वरूप-विचारों में समाधान, व्यवहार में सामाजिकता, व्यवसाय में स्वावलम्बन एवं शरीर में स्वास्थ्य, स्फूर्ति ताजगी एवं अनुभव में प्रसन्नता, उत्साह, आनन्द। इन सबका एक नाम सुख दे सकते है ये सत्य है कि हमारा सारा कार्य, व्यवहार, विचार इसी आशय से प्रेरित रहता है। परन्तु क्या मानव सुखी दीखता है? धरती पर अपने पास-पड़ाेस में देखने पर, दूर-दूर के समाचार सुनने से तथा अन्य सर्वेक्षण करने से पता चलता है कि मानव सुख चाहता तो है परन्तु वह वर्तमान में मानव सुखी नहीं दिखता। सुख पाता भी है तो क्षणिक समय के लिए लेकिन चाहना तो निरन्तर सुख की है। इस प्रकार सुख चाहने व सुखी होने के बीच दूरी बढ़ती ही जा रही है। जिसके मूल कारण को समझने जाये तो समझ में आता है कि हमसे कही चुक हो रही है। सुखी होने का स्त्रोत/उदगम का पता हम पूर्णत: नहीं जान पाये है व उसे प्रमाणित नहीं कर पाये है। शिक्षा व्यवस्था एक ऐसी व्यवस्था है जहॉ से संपूर्ण ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। शिक्षा व्यवस्था एवं शिक्षक की इसमें क्या भूमिका है, शिक्षा का परिवेश कैसा हो, शिक्षक एवं शिक्षक की शैली कैसी हो एवं शिक्षा का उद्देस्य क्या हो? जिससे प्रत्येक मानव में मानवीयता प्रमाणीत हो पाये, मानवीय मूल्य प्रमाणित हो पायो ऐसे शिक्षा-संस्कार व्यवस्था की आवश्यकता पर पुर्नविचार की आव”यकता है। |