ISSN No: 2231-5063
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Article Name :
अमृतलाल नागर के उपन्यासों में लोक चेतना का मुल्याकंन
Author Name :
हरमन्दर सिंह
Publisher :
Ashok Yakkaldevi
Article Series No. :
GRT-6164
Article URL :
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Abstract :
लोक चेतना शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है। ''लोक व चेतना'' अर्थात् लोक चेतना। अत: लोक चेतना शब्द 'लोक और चेतना का द्वित्व है। सिध्दान्त कौमुदी के अनुसार लोक संस्कृत के लोक: शब्द का पर्याय न होकर लोक् संस्कृत शब्द जिसका अर्थ दर्शनस् रूप में जाना जाता है, उसका मेल माना जाता है। महाभारत में लोक शब्द का अर्थ साधारण जनता केे रूप में प्रयुक्त हुआ है। वहीं चेतना को जागरूकता का पर्याय बताया गया है। श्री मद्भगवत् गीतां में लोक का अर्थ साधारण जनता का आचरण तथा व्यवहार से लिया गया है। जबकि संस्कृत हिन्दी कोश में चेतना का अर्थ संजीवता माना गया है। हंजारी प्रसाद द्विवेदी ने लोक चेतना का अर्थ इस रूप में स्वीकार किया है ''गॉवों में फैली हुई जनता को नए कार्य व नए आयामों से परिचित करवाना ही लोक चेतना है।'' नागर जी द्वारा यहॉ प्रस्तुत लोक चेतना शब्द से तात्पर्य है ग्राम्य चेतना, आंचलिक चेतना, देहाती लोगो के अकृत्रिम,सहज, स्वाभविक ,विचार, जिनमे उनके तीज, त्यौहार, पर्व, मेले, रीति, रिवाज, जादू टोना, रूढिया, अन्धविश्वास,चुहलबाजियॉ, वैवाहिक गीत, लोरिया, टोटके आदि आते है लोक विश्वास, लोक परम्परा,लोक गीत लोकमानस इन्ही के अंग इन्ही से लोक गीत लोकमानस इन्ही के अंग है इन्ही से लोक गीत, लोक साहित्य, लोक गाथा, लोक कथा बनते है।
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