हिंदी फिल्मों की वितरण व्यिस्था पिछले 100 सालों मेंमजबतू और ठोस हो चकुी । पहले निर्माता फिल्मों की घोषणा करिेके बाद फिल्मों की घोषणा करिे के बाद वितरकों से बैठक करते थे। वितरकों से मिले पैंसों से ही फिल्मों का निर्माण होता था। वितरक और फायानेंसर फिल्म की फेस वैल्यू के आधार पर फिल्म की कीमत तय करतेथे। आजादी केबाद लिंबे समय तक वितरण के लिहाज से छह प्रमखु टेरिटरी रही। इधर दशे की जनसंख्या बढाने साथ सिनेमाघारो की संख्या या भी बढ़ी । |