ISSN No: 2231-5063
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Article Name :
अदिवासी लोकसाहित्य, लोकगीत: के सन्धर्भ में
Author Name :
शोभा नारायणराव ढाणकीकर
Publisher :
Ashok Yakkaldevi
Article Series No. :
GRT-6403
Article URL :
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Abstract :
लोकसंस्कृति का व्यावहारिक पक्ष लोक जीवन है और उसके प्रायोगिक निष्कर्ष के रूप में समुपस्थित है लोक साहित्य। लोक मानव की अथाह गहराईयों में निष्फल बहुमूल्य भावरत्नों कि जगमगाती हुई ज्योति से लोक साहित्य का रूपांकन हुआ है। वस्तुतः किसी भी देश के लोकसाहित्य का अध्ययन उसकी सभ्यता, संस्कृतिक धर्म, रीति-रिवाज, कला एवं साहित्य, सामाजिक जागरण एवं आकांक्षाओं का सुक्ष्म अवलोकन करने में सहायक होता है। संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि, लोकसाहित्य में लोकजीवन का रूप अधिक आकर्षक और साफ सुथरा होकर झलकने लगता है। लोकसाहित्य लोकसंस्कृती के विभिन्न उपदानों का सशक्त संवाहक है। गांव का अनपढ, भोला-भाला धरती की गोद में पलने वाला, कठोर परिश्रमों से अजीविका चलाने वाला, बिना किसी प्रकार की शिकायत किए ‘आत्म’ के साथ विश्व का पोषण वर्धन करने वाला, गावो में निवास करने वाला कृषक व श्रमिक ही हमारी समृध्द लोकसंस्कृति के सशक्त आधार -स्तंम्भ है।
Keywords :
  • अदिवासी लोकसाहित्य,लोकगीत,लोकसंस्कृति ,
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