ISSN No: 2231-5063
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Article Name :
न्यायिक सक्रियतावादः भारतीय प्रजातंत्र के विशेष संदर्भ में
Author Name :
मोहम्मद वसीम अकरम मोमिन
Publisher :
Ashok Yakkaldevi
Article Series No. :
GRT-6780
Article URL :
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Abstract :
संवैधानिक दृष्टिकोण से भारत एक लोकतांत्रिक, समाजवादी कल्याणकारी देष है। न्यायिक सक्रियता बदलते समय में न्यायिक दृष्टिकोण की एक गतिषील प्रक्रिया है, जो न्यायधीषों केा प्रेरित करती है कि वे परम्परागत उदाहरणों को अपनाने की अपेक्षा प्रगतिषील दृष्टि और नई समाजिक नीतियों को अपनाएं। उदाहरणतः भारत के उच्च न्यायालय ने एक पत्र को भी रिट याचिका के रूप में उपयोग किया है और उचित आदेष पारित किया है। 1979 में न्यायमूर्ति वाई.वी. चंद्रचूड़ द्वारा अनुच्छेद 32 के अंतर्गत जनहित याचिका से संबंधित व्यवस्था की गई । बाद में न्यायामूर्ति पी. एन. भगवती ने मुख्य न्यायाधीष केा भेजे गए पत्रों को दी जनहित याचिका के रूप में स्वीकार करके न्यायिक सक्रियता को एक नई दिशा प्रदान की। न्यायापालिका अपनी न्यायिक शक्तियों का प्रयोग मौलिक अधिकारों की रक्षा और देष के नागरिकों की स्वतंत्रता के लिए करती है। लोकतन्त्र के तीन प्रमुख स्तम्भ है। कार्यपालिका, विधायिका एवं न्यायपालिका। भारत के संविधान में व्यवस्थापिका, कार्यपालिका एवं न्यायपालिका के कार्यो द्वारा अपने उत्तरदायित्व का वहन ठीक प्रकार से नहीं किया जाता,तो न केवल लोगों के बुनियादी अधिकारों पर प्रभाव पड़ता है, बल्कि समाज में अन्याय और अषान्ति को प्रोत्साहन प्राप्त होने लगता है।
Keywords :
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