भक्ति की साधना में प्रारंभ से ही सुख-ही-सुख है। मन, वचन एवं कर्म में ईश्वर के चरणों में प्रेम ही परम परमार्थ है। भक्ति में सबसे बड़ा लाभ तो यह है कि उससे बड़े-बड़े मानस-रोग, जिनके वश में होकर सब जीव दुःखी हो रहे हैं, नहीं सता पाते। ळमारे धार्मिक एवं भक्ति विशयक षास्त्रीय-ग्रंथों में सत्संग की महिमा का ज़ोरदार प्रतिपादन हुआ है। जब हम किसी आध्यात्मिक विशय का चिंतन करते हैं, उस समय हमारा मन सांसारिक चिंता-धारा में प्रवाहित रहता है। अतः सांसारिक विशयों से इसे मोड़कर भगवत् चरणों में एकाग्र एवं केंद्रित करना ही भक्ति का आरंभ है।
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