वर्तमान भारतीय ही नहीं बल्कि विदेशी परिवारों में विघटन तथा बच्चों में गिरते नैतिक मूल्य एक विकट और विकराल समस्या सुरसा के मुख के समान बढ़ती जा रही है। लोग चाहकर भी इससे बाहर निकलनें में अपने आपको असमर्थ पाते हैं। आज परिवार के सभी सम्बन्ध बिगड़ चुके हैं। स्वार्थ में उलझे लोग अपने से हटकर देखने में नितान्त असमर्थ दिखाई देते हैं। ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की भावना तो दूर रही सहोदर भी पराये हो गये हैं। |