हिंदी आलोचना के विकास में आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी का विशिष्ट योगदान रहा है । आचार्य रामचंद्र शुक्ल के व्यक्तित्व से प्रेरणा लेते हुए द्विवेदी जी ने अपेक्षाकृत अधिक उदारवादी दृष्टी अपनाई , जिसके कारण वे ऐसी साहित्य धाराओं के साथ भी न्याय कर सके जो शुक्ल जी द्वारा समुचित महत्व प्राप्त नहीं कर सकी थी। |