गौरवशाली एवं उन्नत प्राचीन भारतीय संस्कृति को भुला आज का मानव , आधुनिक होने का दम्भ भरता हैं | प्राचीन शब्द सुनते ही मस्तिष्क में रूढ़िवादिता, आडंबर, निरवता, सामाजिक बंधनों की जकड़न व् घुटन का एहसास होने लगता हैं | परन्तु प्राचीन भारतीय साहित्य में नारी की स्थिति उनकी विद्वत्ता, उच्चशिक्षा, कर्त्तव्य, शालीनता के साथ भ्रष्ट कार्यों का विषद वर्णन मिलता हैं | गुप्तकालीन साहित्य में नारी की स्थिति का आदर्शमय चित्रण हैं और उसकी पराधीनता, परतन्त्रता का भी पता चलता हैं | जिससे हमे गुप्तकालीन समाज में नारियों की स्थिति का वास्तविक ज्ञान होता हैं | |